बुधवार, 29 अक्तूबर 2014

Sweep the Sarpanch-झाड़ू वाली सरपंच

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा दो अक्टूबर गांधी जयंती के दिन को सफाई दिवस के रूप में मनाने के फैसले के बाद अच्छे-अच्छों के हाथों में झाडू आ गया है लेकिन यह स्थिति साल में सिर्फ एक दिन ही देखने को मिली है, लेकिन इन सबसे भी बहुत पहले से उसने अपने हाथों में झाडू थाम लिया है। कहने को तो वो सरपंच है लेकिन आज भी वह गांव की गलियों में झाड़ू लगाती है, उसका मानना है कि सरपंच पद दो बस चार दिन की है, आज है पर क्या पता कल रहे या न रहे। फिर अपना काम करने से गुरेज कैसा। इसलिए यदि हम उसे झाड़ूवाली सरपंच भी कह सकते हैं। प्रस्तुत है ‘‘झाडूवाली सरपंच’’ पर मध्यप्रदेश के भिंड से अब्दुल शरीफ की यह खास पड़ताल।

गांव के लोग दलित महिला सरपंच के जज्बे को सलाम करते हैं। सरपंच होने के बाद भी वह गांव की गलियां झाड़ू लगाकर चमाचम रखती है। लोगों ने मना किया तो बोली, ए सरपंची तो पांच साल की है इसके बाद तो झाड़ू ही लगानी है। वैसे भी हमारे काम करने से अन्य लोग भी काम करते हैं और गांव साफ रहता है।

चार साल पहले ग्राम पंचायत पांडरी की सरपंच बनीं आशादेवी ने ईमानदारी की मिसाल पेश करते हुए पंचायत निधि से दो करोड़ के विकास कार्य कराए हैं। लेकिन खुद आज भी सामान्य घर में ही रह रही हैं। आशादेवी ने कहा हम अपना पुश्तैनी काम नहीं छोड़ सकते। यही काम करके हमने अपने बच्चों को पाला पोसा और उनको पढ़ा.लिखा रहे हैं। गांव में झाड़ू लगाने व त्रयोदशी एवं वैवाहिक कार्यक्रमों में पत्तलें उठाकर इतना तो मिल जाता है कि उससे परिवार भी पलता है और बाल बच्चों की शादियां भी आसानी से निपट जाती हैं। शासन द्वारा हर माह मानदेय के रूप में मिलने वाले 1750 रूपए से वह संतुष्ट हैं। पति राजाराम उर्फ घोंचे श्वास रोग से पीडित हैं। ऐसे में छह बेटे और चार बेटियां का जिम्मा आशादेवी पर ही है। सरपंच तीन बेटियों और तीन बेटों की शादी भी कर चुकी हैं। जिनमें से एक पुत्रवधू का करीब 11 साल का बेटा भी है।  

चार साल में कराए दो करोड़ के विकास कार्य
करीब सात हजार की आबादी वाले गांव पांडरी की सरपंच आशा देवी ने अपने चार वर्ष के कार्यकाल में 10 सीसी रोड निर्माण, 07 हैंडपंप, एक पुलिया, 14 मेढ़ बंधान, एक प्राथमिक विद्यालय भवन, 35 शौचालय, 20 हितग्राहियों को शौचालय के लिए प्रोत्साहन राशि दी, 18 गृह राज्य आवास, 07 इंदिरा आवास, 60 मुख्यमंत्री आवास स्वीकृत करवाकर बनवाए हैं। कुल मिलाकर लगभग दो करोड़ रूपए की लागत के निर्माण एवं विकास कार्य करवाए जा चुके हैं जबकि कार्यकाल पूरा होने में अभी एक वर्ष बाकी है। इस एक वर्ष में भी उसे अपने गांव के लिए बहुत कुछ करवाना है।

अपने काम में काहे की शर्म
आशादेवी को गांव के लोग झाड़ू लगाते या जूठी पत्तलें उठाते हुए देखकर लोग कहते हैं कि सरपंच होकर ऐसा क्यों कर रही हो तो उनका जवाब होता है अपने काम में काहे की शर्म। सरपंची तो सिर्फ पांच साल की है।  इसके लिए हम अपना पुश्तैनी काम क्यों छोड़ें। आज जब लोग छोटा सा भी कोई पद पाने के बाद बदल जाते हैं, सरपंच बनने के चार साल बाद भी आशा देवी वही पुरानी आशा है जो कि सरपंच बनने से पहले थी, सरपंच बनने के पहले से जो काम वह करते आ रही थी, सरपंच बनने के बाद भी वह अपने उसी पुश्तैनी काम में मशगूल नजर आती है। आशादेवी के बारे में उसके सहयोगी ग्राम पंचायत पांडरी के सचिव अनिल तिवारी बताते हैं कि आशादेवी के चार वर्ष के कार्यकाल में करीब दो करोड़ के विकास एवं निर्माण कार्य हो चुके हैं। सरपंच होते हुए भी उन्होंने मजदूरी करना नहीं छोड़ा। ऐसे कर्मप्रिय सरपंच को पंचायत की मुस्कान परिवार नमन करता है।

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