बुधवार, 29 अक्तूबर 2014

400 years old village-400 साल पुराना गांव-खुड्डा लाहौरा

चंडीगढ़

कभी 35 घर और आबादी 250 थी...। मतदाताओं की संख्या मात्र 180...। समय के साथ-साथ गांव खुड्डा लाहौरा में अमूल चूल बदलाव आए। आज यहां की जनसंख्या करीब 15 हजार है। साथ ही लोगों ने अपने जरूरत की सभी सुविधाएं भी जुटा ली है। 

इसको पंजाब के तपा मंडी (संगरूर) के धालीवाल परिवार और गांव बिरपणा (संगरूर) के धालीवालों के रिश्तेदार सराओ के परिवार ने इस गांव को बसाया था। इसके अलावा मोहाली के सहोता, गांव खेड़ा (फतेहगढ़ साहिब) के कट्टू, गांव चैदां (संगरूर), गांव नंगला (लुधियाना), के नारद और पिंड रल्ला जोगा (मानसा) के चाहल भाईचारे ने बांधा था। 

इस गांव के मान गोत के इकलौते परिवार के मुखिया मनमोहन सिंह करीब एक दशक ये सरपंच रह चुके हैं। वर्तमान में पूरन चंद के पोते राकेश शर्मा सरपंच हैं। इससे पहले राकेश शर्मा की मां सरपंच रह चुकी हैं। लोगों का मानना है कि गांव का इतिहास करीब चार सौ साल का है। आज भी गांव की शान हरिबाबा का स्थान और पुराना पीपल का पेड़ है।

गेहूं और धान की होती है फसल

इस गांव का रकबा 750 एकड़ है। कभी यहां पर कनक, धान, मक्की, मूंगफली, गन्ना, तिल, चना आदि फसल खूब होती थी। अब केवल गेहूं और धान की खेती के अलावा पशुओं के चारे की खेती होती है। यहां के लोग नीलगाय और जंगली सूअर से परेशान है। ये फसलों को तबाह कर रहे हैं।

1901 में बना था लोअर मिडिल स्कूल

इस गांव में वर्ष 1901 में बना लोअर मिडिल स्कूल के पहले विद्यार्थी इस गांव के सरपंच राकेश शर्मा के दादा पूरन चंद थे। अब यह स्कूल अपग्रेड होकर सीनियर सेकेंडरी हो गया है। गांव में भाईचारा कायम रहे इसके लिए अलग-अलग कुआं थे। गांव के पास अभी भी करीब 450 एकड़ जमीन बची है। पहले इस गांव के साथ लगते गांव खुड्डा जस्सू के साथ पंचायत थी। 1973 में गांव की अलग पंचायत बनी।

अब यह है हाल
गांव की जनसंख्या---15000
मकान-----------4000
वोटर-------3500

यह हैं सुविधाएं

गांव में अच्छा पार्क, पीने का पानी, सीवर सिस्टम, स्टार्म वाटर की बेहतर व्यवस्था है। गलिया पक्की, फिरनी के चारों ओर पेवर ब्लॉक लगे हैं। डबल स्टोरी धर्मशाला। वेटनरी सब सेंटर, हेल्थ सेंटर, सीनियर सेकेंडरी स्कूल की व्यवस्था है। साथ ही गांव में तीन मंदिर, एक गुरुद्वारा, एक गुग्गामाड़ी मंदिर के अलावा हरिपुर वाले बाबा का स्थान भी है।

ये हैं लोगों की मांगे

गांव में खेल का मैदान और स्टेडियम नहीं है। धार्मिक सामाजिक कार्यक्रम के लिए कम्युनिटी सेंटर, बस स्टाप पर शेल्टर बने, गंदे नाले को पक्का किया जाए। गांव के विद्यार्थियों को पढ़ाई और नौकरी में स्पेशल कोटा दिया जाए।

ये है विरासत

जब गांव बसा था उस समय का एक पुराना कुआं है। इसमें पानी नहीं है। पेंट कर और टाइल लगाकर इसे संजोकर रखा गया है। गांव के लोग इसे पूजा के लिए और यादगार के रूप में संजोए हैं।

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