शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

Growth story-Gram Panchayat Rajnagar-चुनौतियों से लड़ कर शांति बनीं आइकॉन

पंचायत की मुस्कान ग्रामीण विकास पर केन्द्रित पत्रिका है और विकास गाथा इस पत्रिका का एक नियमित स्तंभ है। इस स्तंभ के अंतर्गत हम विकास की कहानी बतायेंगे जो चाहे देश के किसी भी कोने का हो, किसी भी ग्राम पंचायत का हो अथवा व्यक्ति विशेष का हो। हो सकता है विकास गाथा में अगला नंबर आपके ग्राम पंचायत का हो, आपका हो। विकास गाथा स्तंभ के लिए तुरंत फोन करें - 07489405373

बिहार में मधुबनी जिले के राजनगर प्रखंड की सिमरी पंचायत की सरपंच शांति देवी ने जो मन में ठानी, उसे हासिल करके ही दम लिया. लोगों के तानों को चुनौती मान कर उन्होंने ऐसा कर दिखाया कि आज अनपढ़, गरीब और हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए आदर्श बन गयी हैं. वह महिलाओं के वोट से जीत कर ‘पंचायत सरकार’ चला रही हैं. खुद समाज के ताने, जुल्म व सितम सह चुकी शांति समाज की महिलाओं पर हो रहे शोषण के विरुद्ध आवाज बुलंद कर रही हैं.

17 वर्ष की उम्र में हुई थी शादी

शांति की 17 वर्ष की कम उम्र में ही शादी हो गयी थी. पति मुंबई में काम करते हैं. शादी के बाद जब वह गांव गयीं, तो देखा कि दबंग लोग गरीबों पर जुल्म-सितम ढाते हैं. यह सब देखकर उन्हें अच्छा नहीं लगता था. उन पर घर की जिम्मेदारी तो थी ही. इसके अलावा दो छोटे-छोटे बच्चों की पढ़ाई और सास- ससुर का भी ख्याल रखना होता था. घर की स्थिति को देखते हुए वह ‘जीविका स्वयं सहायता समूह’ की सदस्य बन गयीं. हफ्ते में 5 से 10 रुपया जमा करने लगीं. पहले संस्था की कोषाध्यक्ष बनीं और आज जीविका मित्र हैं. 

महिलाओं को सूदखोरों से बचाया

गरीब महिलाएं घर चलाने के लिए सूद पर पैसे लेती थीं. शांति भी इसकी शिकार हुईं. उन्हें सास के इलाज के लिए जेवर को सूद पर रखना पडा. ‘जीविका’ से जुड़कर वह और अन्य महिलाएं मिल कर हफ्ते में 5-10 रुपये जमा करने लगीं. धीरे -धीरे समूह में अन्य महिलाओं ने भी पैसा जमा करना शुरू किया. आज शांति देवी ही महिलाओं को10-12 हजार रुपये तक कर्ज खुद देती हैं. महिलाओं को 20 बार में 500-500 रुपये कर कर्ज लौटाना होता है और इस पर सूद एक रुपये की दर से लगता है. आज उनके नेतृत्व में ऐसे 12 समूह काम कर रहे हैं. प्रत्येक समूह में 12-14 महिलाएं हैं. 

क्या कहती हैं शांति

मैंने जब काम करना शुरू किया, दबंगों ने बार-बार अचड़नें डालने की कोशिश की.मुङो सरेआम मारा-पीटा भी गया. उस वक्त मेरी चीख किसी ने नहीं सुनी, पर ‘जीविका’ से जुड़ी अन्य महिलाओं ने मेरा पूरा साथ दिया. हम सभी ने मिल कर दबंगों का सामना करने का निश्चय कर लिया.

दबंगों का सामना करने के लिए ही मैं 2011 में पहली बार पंचायत चुनाव में खड़ी हुईं और जीत भी गयी. आज मैं सरपंच की कुर्सी पर सिर्फ गांव की दीदी लोगों की बदौलत पहुंची हूं. उन्हीं लोगों के वोट के बल पर मैंने मधुबनी जिले के राजनगर प्रखंड की सिमरी पंचायत के चुनाव में आठ पुरुष उम्मीदवारों को 548 वोटों के भारी अंतर से हराया.

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