बुधवार, 29 अक्तूबर 2014

Growth story-Chetar-जहां सभी साक्षर

राजेश पटेल

झारखण्ड का एक गांव, शिक्षा और रहन सहन के मामले में जो है शहरों से भी बेहतर। इस गांव के इतने चर्चे कि उसे देखने के लिए राजधानी रांची से लेकर लंदन तक से लोग आ चुके हैं। इस गांव में आखिर ऐसा क्या है कि इस गांव को देखने विदेशियों को भी आना पड़ा, जानिए इस खास रिपोर्ट में।

छत्तीसगढ़ के साथ-साथ जो दो अन्य राज्य अस्तित्व में आए उसमें एक उत्तराखण्ड है और दूसरा झारखंड। देश के तीन बड़े राज्यों उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और बिहार का विभाजन कर इन राज्यों का गठन किया गया था। झारखण्ड और छत्तीसगढ़ की सीमा आपस में लगी हुई है और रहन-सहन से लेकर इन दोनों प्रदेशों के गांवों में काफी कुछ समानता देखने को मिलती है। एक और बात जो दोनों प्रदेशों को समान बनाती है वह यह कि गठन के बाद से दोनों ही प्रदेश एक ही प्रकार के नक्सल चुनौतियों से दो-चार हो रहे हैं। इसी झारखंड के रामगढ़ जिला स्थित चेटर गांव के लोगों ने खुद के प्रयासों से आदर्श पेश किया है। 15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हुआ और इन 67 सालों में किसी अपराधी को पकड़ने के नाम से आज तक पुलिस नहीं पंहुची। आजादी के बाद से गांव का कोई भी मामला थाने तक नहीं पहुंचा। इस गांव की एक और विशेषता, इस गांव के सभी लोग पढ़े लिखे हैं। शत-प्रतिशत साक्षरता वाले इस गांव की आबादी करीब एक हजार है जिनमें 35 लोग शिक्षक हैं। ऐसा भी नहीं है कि इस गांव में कभी कोई विवाद नहीं होता। इस गांव में भी छोटे मोटे विवाद होते रहते हैं लेकिन गांव में किसी विवाद की स्थिति में मामला पुलिस के पास जाने के बजाए पंचायत में ही सर्वसम्मति से सुलझा लिया जाता है तथा जरूरत पड़ी तो दोषी को जुर्माना लगाकर दण्डित किया जाता है। दोषी पर लगाए गए अर्थदंड को भी गांव के किसी सार्वजनिक कार्य अथवा निर्धन की सहायता में खर्च किया जाता है। इस गांव के लोगों की सरलता, सहजता और सादगी की चर्चा प्रदेश की राजधानी से लेकर सात समुंदर पार तक जा चुकी है। ग्रामीणों की माने तो उनका रहन-सहन देखने रांची के संत जेवियर कॉलेज के छात्र से लेकर लंदन से भी लोग आ चुके हैं।

रामगढ़ जिला मुख्यालय से करीब पांच किलोमीटर दूर इस गांव की तरक्की देखते ही बनती है। गांवों की संकरी गलियों के विपरीत यहां की गलियां इतनी चैड़ी की हर गली में चार पहिया वाहन आसानी से आ-जा सकता है। यहां गंदगी और गंदे पानी को तो जैसे ढूंढते रह जाओगे। गांव में कहीं पर भी गंदा पानी नहीं दिखता और गांव की सभी नालियां अंडरग्राउंड हैं। गलियों की साफ-सफाई गांव के ही युवक टोली बनाकर करते हैं। मौका खुशी का हो या किसी के गम का, गांव का कोई भी नागरिक नशे में नहीं दिखता। कोठार पंचायत के इस गांव में महतो, मुंडा, बेदिया, करमाली, मुसलमान, ठाकुर (नाई) तथा कुम्हार जाति के लोग रहते हैं लेकिन इनकी एकता देखकर लगता है कि पूरा गांव एक ही परिवार है। 80 वर्षीय तुलाराम महतो बताते हैं कि वे लोग आजादी के आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ नारे लगाते थे लेकिन आजादी के बाद से यहां का कोई मामला पुलिस तक नहीं पहुंचा। गांव में कोई विवाद हो भी जाता है तो उस विवाद को निपटाने के लिए सर्वसम्मति से पंच चुने जाते हैं, जिनका फैसला सभी को मान्य होता है। अर्थदंड की राशि दो लोगों के नाम से खुले खाते में रखी जाती है। जिसे किसी गरीब की बेटी की शादी में या सार्वजनिक कार्य में खर्च किया जाता है। इलाके के पुलिस अधीक्षक रंजीत कुमार प्रसाद ने कहा कि चेटर गांव के लोग तारीफ के काबिल हैं, जो आपसी विवाद को पंचायत में सुलझा लेते हैं। गांव का अपराध शून्य होना बहुत सराहनीय है।

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