शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

Growth story-Gram Panchayat Birra-बिर्रा गांव का गौरव शुभम

पंचायत की मुस्कान ग्रामीण विकास पर केन्द्रित पत्रिका है और विकास गाथा इस पत्रिका का एक नियमित स्तंभ है। इस स्तंभ के अंतर्गत हम विकास की कहानी बतायेंगे जो चाहे देश के किसी भी कोने का हो, किसी भी ग्राम पंचायत का हो अथवा व्यक्ति विशेष का हो। हो सकता है विकास गाथा में अगला नंबर आपके ग्राम पंचायत का हो, आपका हो। विकास गाथा स्तंभ के लिए तुरंत फोन करें - 07489405373

एक छोटा सा गांव, एक ऐसा गांव जहां शासकीय तो क्या प्राइवेट कालेज तक नहीं है। स्कूल स्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद लोगों को बाहर का रूख करना पड़ता है। ऐसे में यहां से स्कूल स्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद कोई अपने गांव, जिला, प्रदेश व देश की सीमा से परे दूसरे देश जा पंहुचे तो एक छोटे से गांव के गौरव उस बच्चे के प्रति जिज्ञासा जगना स्वाभाविक है। कभी पोराबाई केे नाम से कुख्यात हो चुके जांजगीर चांपा जिले के ग्राम बिर्रा के डाॅ. आई पी शुक्ला एवं श्रीमती सीमा शुक्ला का छोटा पुत्र शुभम शुक्ला रूस में डाक्टरी की पढ़ाई कर रहा है। शुंभम के बिर्रा आगमन पर हमने शुभम और रूस के बारे में उनसे बात की।

रूस में मुख्य रूप से दो भाषाओं में शिक्षा प्रदान की जाती है। एक उनकी मातृभाषा में तो दूसरी इंग्लिश में। रूसी लोग अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा ग्रहण करना पसंद करते हैं जबकि बाहर देश से रूस पंहुचे लोग ज्यादातर इंग्लिश माध्यम में पढ़ाई करते हैं। ऐसे ही एक इरस्त्रानी कालेज स्टेवरो पोल स्टेट मेडिकल एकेडमी में मैं एम.डी. कोर्स कर रहा हूं तथा तीसरे वर्ष का छात्र हूं। अन्य योरोपीय देशों के मुकाबले रूस में भारतीयों के प्रति सद्भावना एवं मित्रवत व्यवहार किया जाता है इसलिए मौसम की प्रतिकूलता के बावजूद रूस में व्यापक पैमाने पर भारतीय छात्र शिक्षा प्राप्त करते हैं। हमारे कालेज में ही हमारे जिले, प्रदेश से लेकर देश के कोने-कोने से छात्र मौजूद हैं तथा लगभग 350 छात्र भारतीय है वहीं 150 से 200 छात्र पाकिस्तान, श्रीलंका, ग्रीस, अफगानिस्तान, इराक आदि दूसरे देशों से है।

परीक्षा पद्धति भिन्न

हमारे देश और रूस की परीक्षा पद्धति में भारी अंतर है। वहां हमारे देश की तरह परीक्षा के लिए कोई विशेष तारीख और समय तय नहीं की जाती और ना ही लिखित परीक्षा होती है। वहां जब परीक्षा की सूचना दी जाती है तब अपनी तैयारी के हिसाब से छात्र शिक्षकों को सूचित करते हैं कि अमुक विषय की उसकी तैयारी हो चुकी है और उस विषय में परीक्षा दिलानें के लिए वे तैयार है तब शिक्षक उन्हें निर्धारित तिथि और समय बताते हैं जिसमें शिक्षकों की टीम उनसे मौखिक प्रश्न पूछते हैं और जब लगता है कि छात्र 60 प्रतिशत से ज्यादा पाने के लायक है तो उसे पास कर देते हैं नहीं तो फिर से तैयारी करके आने के लिए कह वापस भेज देते हैं।

देशप्रेम की भावना से लबरेज

रसियन लोगों में देश प्रेम की भावना कूट कूट कर भरी हुई है। उन्हें अपनी मातृभाषा से प्यार है इसलिए वो अपनी मातृभाषा में पढ़ाई तो करते ही हैं, साथ ही साथ सभी तरह के बोर्ड सिर्फ और सिर्फ रसियन भाषा में ही लिखे दिखाई देते हैं। वे अपने देश के कानून व नियमों का पालन करने में प्रतिबद्ध नजर आते हैं। पान ठेले से लेकर मेडिकल तक सभी के टेक्स ईमानदारी से शासन के खजाने में जाता है। यहां लोग सड़कों पर गंदगी नहीं फैलाते। जेबरा क्रासिंग से ही सड़क पार करते हैं। यदि कोई व्यक्ति वाहन से दुर्घटना कर देता है तो इसकी सूचना खुद पुलिस को देता है।

राजकपूर और मिथुन के दीवाने

रसियन लोग हिन्दी फिल्मी कलाकारों में सबसे ज्यादा राजकपूर और मिथुन चक्रवर्ती के दीवाने हैं। मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिशतानी, सर पे लाल टोपी रूरी फिर भी दिल है हिंदुस्तानी गीत आज भी यहां के लोगों का पसंदीदा गीत है वहीं मिथुन चक्रवर्ती के फिल्म डिस्को डांसर का गीत जिमी जिमी आजा आजा रसियन मूवी में भी है।

हिटलर की मौत पर जश्न

हिटलर के मौत के दिन को रूस में विक्ट्री डे के रूप में मनाते हैं। इस दिन पूरे देश में जश्न का माहौल रहता है।

स्व. इंदिरा गांधी के प्रति आदर

भारत की पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रति रसियन लोगों के मन में इतना ज्यादा सम्मान है कि वो विश्व महिला दिवस 8 मार्च को उनकी पूजा करते हैं।

शिक्षा के लिए उपयुक्त स्थान

विपरीत जलवायु के बाद भी शुभम शुक्ला का मानना है कि डाक्टर बनने के लिए उनका रूस का चयन बिल्कुल सही था। दो भाईयों में साकेत शुक्ला बड़ा भाई है जिनके नाम पर उनके छोटे से गांव बिर्रा में ही साकेत मेडिकल स्टोर है वहीं बिर्रा के सरस्वती शिशु मंदिर में प्रारंभिक पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए रूस चले गए। रूस जाने के रास्ते के बारे में शुभम का कहना है कि उन्होंने ए.जे. ट्रस्ट एजुकेशनल कंसलटेंसी चेन्नई में परीक्षा दिलाई थी जिसके बाद मेरिट बेस पर वह पढ़ाई के लिए रूस पंहुच गए इसी तरह से दूसरे छात्र भी आ सकते हैं।

गांव में लोगों की सेवा करना लक्ष्य

यह शुभम शुक्ला की माता श्रीमती सीमा शुक्ला और पिता डा. आई. पी. शुक्ला के द्वारा दिए गए संस्कार और रसियन लोगों से ग्रहण की गई देश प्रेम की भावना ही है कि शुभम शुक्ला अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने गांव वापस लौट कर यहीं अस्पताल खोलकर लोगों की सेवा करना चाहते हैं।

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