शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

Growth story-एक और एमबीए सरपंच

पंचायत की मुस्कान ग्रामीण विकास पर केन्द्रित पत्रिका है और विकास गाथा इस पत्रिका का एक नियमित स्तंभ है। इस स्तंभ के अंतर्गत हम विकास की कहानी बतायेंगे जो चाहे देश के किसी भी कोने का हो, किसी भी ग्राम पंचायत का हो अथवा व्यक्ति विशेष का हो। हो सकता है विकास गाथा में अगला नंबर आपके ग्राम पंचायत का हो, आपका हो। विकास गाथा स्तंभ के लिए तुरंत फोन करें - 07489405373

कौन कहता है कि राजनीति अब जनसेवा का माध्यम नहीं रहा तथा राजनीति को सिर्फ वही लोग अपना करियर बनाना चाहते हैं जिसकी राजनीतिक विरासत हो अथवा जिनका दूसरा मार्ग बंद हो चुका है। हमने अपने मई के अंक में एक एमबीए सरपंच छवि राजावत के बारे में आपको बताया था तथा इस अंक में हम आपके सामने फिर से एक ऐसे सरपंच की दास्तान रख रहे हैं जो कि डर्बीशायर से एमबीए है। अपनी जमात में एक से बढ़कर एक एमबीए शिक्षित लोगों को देखकर शायद हमारे गांव देहात के अंगूठा छाप सरपंचों का सीना भी फुलकर चैड़ा हो तथा वो भी गर्व से कहे कि हां देखों, हम भी सरपंच है। 

डर्बीशायर से व्यापार प्रशासन में स्नातकोत्तर डिग्री (एमबीए) हासिल करने के बाद गुरमीत सिंह बाजवा के सामने नौकरी के ढ़ेरों प्रस्ताव थे, लेकिन उनका सपना कुछ और ही था। आज वह पाकिस्तान की सीमा से लगे एक छोटे से गांव के सरपंच निर्वाचित हुए हैं।  बाजवा (28) का कहना है कि वह वही कर रहे हैं, जिसका उन्होंने वादा किया था। उन ग्रामीणों की सेवा करने का जो अभी भी गरीबी और भ्रष्टाचार के शिकार हैं। बाजवा ने बताया कि एक समय मेरा वादा अपने परिवार के सपने को पूरा करने का था, जो मुझे विदेश भेजना चाहता था और अब मेरा वादा अपने लोगों की सेवा करने का है। बाजवा ने कहा कि समाज के लिए काम करने में व्यक्तिगत उत्कृष्टता कोई मायने नहीं रखती। जारी पंचायत चुनाव ने बाजवा के रूप में जम्मू एवं कश्मीर में एक और प्रतिमान दिया है। बाजवा का गांव पाकिस्तान के साथ लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर रणबीरसिंह पोरा क्षेत्र में पड़ता है। बाजवा क्षेत्र के एक अति सम्पन्न और रसूख वाले परिवार से हैं। उनके पिता त्रिलोक सिंह बाजवा पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यसभा सदस्य हैं।

गांव के मतदाताओं ने 17 मई को युवा बाजवा को अपना सरपंच चुनने का निर्णय लिया। बाजवा को 735 वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी करमजीत सिंह को मात्र 140 वोट मिले। कांग गांव में सिखों व गैर सिखों की मिश्रित आबादी है। यहां जाट समुदाय बहुसंख्यक है। यह समुदाय पंजाब और उससे लगे जम्मू के इलाके में फैला हुआ है। पंचायत चुनाव में हिस्सा लेने से पहले बाजवा गांव में ही रहे। जम्मू में प्रारम्भिक शिक्षा के बाद वह 2004 में ब्रिटेन चले गए। वह 2008 में जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा चुनाव में अपने पिता की मदद के लिए भारत लौटे। लेकिन उनके पिता चुनाव हार गए। पिता की ऊंची पहुंच के बावजूद पंचायत चुनाव लड़ने के पीछे बाजवा ने कहा कि एक छोटा कदम हमेशा बड़ी मंजिल के लिए रास्ता तैयार करता है। मैं अपने लोगों के लिए काम करना चाहता था, उनकी सेवा करना चाहता था। और यदि मैं अच्छी तरह से उनकी सेवा कर पाया, तो वह अपने आप में एक बड़ा कदम होगा।

जम्मू एवं कश्मीर के सीमांत गांवों में कई समस्याएं हैं। खेतों की सिंचाई के लिए पानी की कमी, और पानी और भूमि को लेकर बार-बार होने वाले झगड़े।  सीमांत गांवों के निवासी भारत-पाकिस्तान सम्बंधों में तनाव के भी शिकार बनते रहते हैं। बाजवा ने एक बहुत बड़ी समस्या, भ्रष्टाचार का पहले ही खुलासा कर रखा है। उन्होंने कहा कि आज यहां मेरे सामने जो सबसे बड़ी समस्या है वह यह कि 90 प्रतिशत भूस्वामियों ने खुद को गरीबी रेखा के नीचे (बीपीएल) के परिवारों में पंजीकृत करा रखा है। इसके परिणामस्वरूप जो वाकई में बीपीएल परिवार हैं वे पीडि़त हो रहे हैं। बाजवा ने कहा कि मैं सभी वर्गों के सामाजिक उत्थान एवं न्याय के लिए काम करुंगा। यही मेरा लक्ष्य है।

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