शनिवार, 25 अक्तूबर 2014

Growth story-Gram Panchayat Tarenga-बाल पंचायत का जलवा

पंचायत की मुस्कान ग्रामीण विकास पर केन्द्रित पत्रिका है और विकास गाथा इस पत्रिका का एक नियमित स्तंभ है। इस स्तंभ के अंतर्गत हम विकास की कहानी बतायेंगे जो चाहे देश के किसी भी कोने का हो, किसी भी ग्राम पंचायत का हो अथवा व्यक्ति विशेष का हो। हो सकता है विकास गाथा में अगला नंबर आपके ग्राम पंचायत का हो, आपका हो। विकास गाथा स्तंभ के लिए तुरंत फोन करें - 07489405373

रांची से लगभग 70 किलोमीटर दूर स्थित तारंगा गाँव में बच्चों की यह टोली गाना गाकर अपने गांव आए अतिथियों का स्वागत कर रही है. पारंपरिक आदिवासी रीति रिवाज का अनुसरण करते हुए बच्चे पत्तियों से पानी छिड़क कर हर अतिथि का स्वागत करते हैं. तारंगा पूरे देश के लिए एक मिसाल बन चुका है. यहाँ पर बच्चों की अपनी पंचायत नें तारंगा के आसपास के गाँवों की काया ही पलट कर रख दी है. बच्चों की इस पंचायत को देखने अब दूर-दूर से लोग आ रहे हैं. यह पंचायत आम पंचायतों से इस मायने में अलग है कि इसमें सिर्फ बच्चे शामिल हैं. दस साल से लेकर 16 साल तक के बच्चे अपने आसपास के गाँवों में फरमान भी जारी करते हैं और इनके फरमान को मानना सब के लिए अनिवार्य होता है. जो इनके फरमान की अनदेखी करता है, उसे सजा मिलती है. सजा इस रूप में कि बच्चों की टोली घर की रसोई में घुसकर सारा खाना खा जाती है. देश की अनूठी बाल पंचायत अशिक्षा, बाल मजदूरी और पलायन रोकने की दिशा में काम कर रही है. 
रांची और उसके साथ लगे जिलेे आदिवासी बहुल हैं. यह पूरा इलाका मानव तस्करी का गढ़ रहा है. रांची, गुमला, सिमडेगा और आसपास के जिलों से छोटी-छोटी बच्चियों को महानगरों में बेच दिया जाता है जहाँ इनसे नौकरानी का काम करवाया जाता है.

आम चलन

स्कूल भेजने की बजाए समाज के लोगों में बच्चों को ईंट भट्ठों, निर्माण स्थलों और खेतों में मजदूरी करने भेज देने का चलन आम है. तारंगा की बाल पंचायत के सदस्य स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों के घर धावा बोल रहे हैं. बच्चों के अभिभावकों को उन्हें स्कूल भेजने की सलाह दे रहे हैं और अगर अभिभावक उन्हें फिर भी स्कूल भेजने की बजाए मजदूरी करने भेज देते हैं तो यह बच्चे उनके घरों में धावा बोल देते हैं. इतना ही नहीं, फरमान नहीं माने वालों के घर में घुसकर वह खाना भी खा जाते हैं. बुधवार की सुबह तारंगा में भारतीय किसान संघ की ओर से संचालित ब्रिज कोर्स सेंटर में बच्चे जमा हैं. हर बुधवार को तरंगा में बाल पंचायत लगती है. ब्रिज कोर्स सेंटर के सुनील गोता कहते हैं कि पंचायत शुरू होने से पहले बच्चे गाँवों का भ्रमण करते हैं. वह कहते हैं, ‘सुबह पहला काम होता है भ्रमण. इस दौरान पंचायत के सदस्य गाँव के लोगों को सामजिक बुराइयों और शिक्षा के महत्त्व के बारे में समझाने का काम करते हैं. भ्रमण के बाद समीक्षा का दौर चलता है.’

बच्चों का दल तरंगा के पास ही एक गाँव में बिनीता के घर जा धमका. बिनीता के पिता बच्चों के दल के आगे बेबस नजर आये. वह शर्मा भी रहे थे क्योंकि बिनीता घर पर नहीं थी. ‘अभी तो यहीं थी. पता नहीं कहाँ चली गयी’ वह झेंपते हुए कहते हैं. लेकिन बच्चों का दल बिनता के पिता की दलील मानने को तैयार नहीं है. बच्चे कहते हैं कि वह दो बार उनके घर आ चुके हैं मगर इसके बावजूद बिनीता ने स्कूल आना शुरू नहीं किया है. बच्चों को खबर मिली है कि बिनीता मजदूरी करने जाती है. बाल पंचायत के सदस्यों नें बिनीता के पिता से वादा करवाया कि वह उसे नियमित रूप से स्कूल भेजेंगे. दल नें उन्हें साफ लफ्जों में धमकी भी दी कि अबकी बार जब वह बिनीता के घर आएँगे तो सारा खाना खा जाएँगे.

बाल पंचायत का काम

‘पंचायत के सदस्य गाँव के लोगों को सामजिक बुराइयों और शिक्षा के महत्त्व के बारे में समझाने का काम करते हैं. भ्रमण के बाद समीक्षा का दौर चलता है.’
सुनील गोता, तारंगा निवासी

बिनीता के पिता का कहना था कि लाख समझाने के बावजूद वह स्कूल नहीं जाती है. मगर वह कहते हैं कि अब ऐसा नहीं होगा और वह स्वयं सुनिश्चित करेंगे के वह स्कूल जाए. गाँवों के भ्रमण के बाद बच्चों की टोली वापस अपने ब्रिज कोर्स सेंटर लौट आती है. फिर यहाँ विधिवत पंचायत लगती है ताकि वह सुबह के कार्यक्रम की समीक्षा कर सकें और नयी योजना भी बना सकें. बाल पंचायत की बैठक रतनी कुमारी की अध्यक्षता में हो रही है. बैठक में सबका अलग-अलग काम है. कोई रजिस्टर में बैठक की प्रोसीडिंग लिखता है तो कोई उन बच्चों की फेहरिस्त तैयार करता है, जो पढने की बजाए मजदूरी करने जाते हैं. पंच परमेश्वरों का फैसला होता है कि तारंगा के ही जतन ओराँव और परबतिया के अभिभावक समझाने के बावजूद अपने बच्चों को मजदूरी के लिए भेजते हैं.

स्कूल नहीं भेजते. इस लिए उनके अभिभावकों का वह रास्ता रोकेंगे और उनके घर घुसकर खाना खा जाएँगे. यह कब होगा इसे गोट रखा गया है ताकि सूचना जतन और परबतिया के अभिभावकों तक नहीं पहुंचे. झारखंड में हाल ही में संपन्न हुए पंचायत चुनाव के दौरान भी तारंगा के बच्चों नें बहुत अहम् किरदार अदा किया है. पंचायत चुनाव के दौरान वही उम्मीदवार जीत पाया, जिसे बच्चों नें चाहा.

बाल पंचायत नें नारा दिया:
जो बच्चों की हित में काम करेगा वो पंचायत पर राज करेगा.’ इस पहल के बाद पंचायत चुनाव के उम्मीदवारों नें भी बच्चों के हितों को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया. आज बाल पंचायत नें तारंगा और इसके आस पास के इलाकों की एक नयी इबारत लिखनी शुरू कर दी है. आज बच्चों को उनके अभिभावक मजदूरी करने की बजाए स्कूल भेज रहे है.

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